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आवाज़ / रतन सिंह ढिल्लों
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मैं तुझे
नदी के इस किनारे से
आवाज़ दे रहा हूँ
तू नदी के दूसरे किनारे
मेरी तरफ
पीठ करके खड़ी है
काश!
तेरी पीठ पर उग आतीं आँखें
पुल बन सकती मेरी आवाज़ ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला