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इज़्ज़तपुरम्-33 / डी. एम. मिश्र

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अपेक्षाएँ
अधिक प्रबल हों
तो उपेक्षाएँ भी
सिर उठाकर
बोलने को विवश हों

तब
अवज्ञा में
देर न लगे
और भीतर से
ज्वालामुखी
फूट-फूट पड़ें

ऐसे में कोई नहीं बचता
अनुशासन हीनता के
आरोप से