भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठऽ उठऽ हो किसान / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
पुरूब के धपल लाली किलऽ हइ सपना अपजान
उठऽ उठऽ हो किसान हो गेल सुनहर बिहान
घोघा से हुलकल नयकी किरिनियाँ
धथपथ जगावे पियवा कमिनियाँ
काहे सूतल हा तू चदरी के तान
आम के बगिया में कोयली के बोली
चहके बंस बिट्टी में चिरइन के टोली
छज्जा चढ़ कउआ सुना देलक गान
फरगज्जा मारकिन के बान्हऽ मुरेठा
बोलवे ले आ गेलथुन मलिकवा के बेटा
उठऽ चलऽ पड़रम मिल जुल खरिहान
जेकरा पर जिनगी के सपरल सपनमाँ
ढेर दिन पर एसों उपजल अगहनमाँ
कल्ह से डंेगइवे चल अंटिया के धान।