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उपन्यास-तीन / केदारनाथ अग्रवाल

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बड़े चाव से
चंदन घिसते चले जाते हैं
छोटी बड़ी लाइन के
चरित्र के उपन्यास
यथार्थ की पटरी
जगह-जगह टूटी है

रचनाकाल: २५-११-१९६८