उपरान्त जीवन / कुंवर नारायण
मृत्यु इस पृथ्वी पर 
जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है  
किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती 
स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का 
लेखागार हैं हमारे जीवाश्म।  
परलोक इसी दुनिया का मामला है।  
जो सब पीछे छूट जाता 
उसी सबका 
उसी माला से किंवदन्ती-पाठ।  
एक अथक कथावाचक है समय 
ढीठ उपदेशक है कालचक्र 
दुहराता पिछले पाठ 
लिखता कुछ नए पृष्ठ 
जीवन का महाग्रंथ 
एक संकलन के प्रारूप में नत्थी 
पिता-पुत्र दृष्टान्त की 
असंख्य चित्रावलियां।  
एक सच्चा पश्चाताप--एक प्रायश्चित 
एक हार्दिक क्षमायाचना से भी 
परिशुद्ध की जा सकती है 
भूलचूक की पिछली जमीन, 
एक वापसी के सौभाग्य से भी 
मनाया जा सकता है 
एक नए संवत्सर का शु्भ पर्व,  
एक सुलह की शपथ 
हो सकती है पर्याप्त संजीवनी 
कि आंखें मलते हुए उठ बैठे 
एक नया जीवन-संकल्प 
और लिपट जाए गले से 
एक दुर्लभ अपनत्व की पुन:प्राप्ति  
यहां से भी शुरू हो सकता है 
एक उपरान्त जीवन-- 
पूर्णाहुति के बिल्कुल समीप 
बची रह गयी 
किंचित् श्लोक बराबर जगह में भी 
पढ़ा जा सकता है 
एक जीवन-संदेश 
कि समय हमें कुछ भी 
अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता, 
पर अपने बाद 
अमूल्य कुछ छोड़ जाने का 
पूरा अवसर देता है।
 
	
	

