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उसी की राह / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
दाँते पर दाँता बैठ रहा
चक्के से घूम रहा चक्का
धक्के पर धक्का खाता है
फिर भी मस्ती में झूम रहा
यह कौन चला जाता घुसता
इस घनी भीड़ में डूब-डूब?
यह फिर-फिर कौन तैरता है
जीवन में इतना ऊभ-चूभ?
वह कौन जिसे तुम समझ रहे
छीनेगा तुमसे इन्द्रासन?
वह उन लोगों का अपना है
जिनकी रोटी छीनी है तुमने छल-बल से
वह उन लोगों का अपना है
जिनने अपनी ही साँसों से झीनी-झीनी चादर बीनी
अच्छा होगा तुम लाभ-लोभ की बात छोड़
अब चलो उसी की राह गहो
अब चलो उसी के साथ बहो