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एक अकेला दीपक मेरा / रामगोपाल 'रुद्र'

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एक अकेला दीपक मेरा सौ-सौ दाहों जलता है।

आँखों में हिमहास उगाए,
मन में जलती प्यास जुगाए,
तारों-सा मेरा दीपक भी सौ-सौ चाहों से बलता है!

सावन-धार, शरद्‍-उजियारी,
हरसिंगार या हिम की क्यारी
मेरे मन का मोम पिघलकर सौ-सौ साँचों में ढलता है!

जीवन के सपने उधियाते
राखों पर लौ धरने आते,
बुझता-सा विश्‍वास सुलगकर ठंडी साँसों को छलता है!