भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक ऊहापोह / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
कर रहे हैं शब्द समझौते
अर्थ फिर कैसे करे विद्रोह ?
एक ऊहापोह के शव पर
उग रहा है एक ऊहापोह !
कसे थे तूणीर जिनके वास्ते
उन्हीं चरणों पर चढ़ा कर
लौटते हैं जो
भीड़ में शामिल हुए हैं
इस तरह फिर से
लग रहा है वो नहीं है वो
रँग उतरे हुए मुख पर
पोत कर साहस
टोह देकर, ले रहे हैं टोह
अर्थ फिर कैसे करे विद्रोह ?