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एक शहर / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
एक शहर मैंने देखा है
रहता है जो जगरमगर
कभी नहीं बिजली जाती है
ऐसा है वह बना शहर
ऐसे लोग वहाँ रहते हैं
लड़ना आता नहीं जिन्हें
लड़ना-भिड़ना ठीक नहीं है
यह सब भाता नहीं जिन्हें
पुलिस नहीं है, नहीं मुकदमे
न्यायालय का नाम नहीं
दिनभर सब मेहनत करते हैं
पलभर भी आराम नहीं
खेती करते हैं किसान सब
लड़के सारे पढ़ते हैं
अफसर, नेता या व्यापारी
मेहनत करके बढ़ते हैं
दिन में काम, रात में मिलकर
गाते और बजाते हैं
नाटक करते, किस्से कहते
ऐसे मन बहलाते हैं
इसी शहर में चलो चलें हम
खुशियाँ हैं दिन-रात यहाँ
मन को बुरी लगे, ऐसी है
नहीं एक भी बात जहाँ।