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ऐ हम / ज़िया फ़तेहाबादी
Kavita Kosh से
मैंने अपने मैं से पूछा एक दिन
कोई बाईस तेरी ख़ुशनूदी का है
बोला, हैरत है, नहीं तुझ को ख़बर
राज़ इसी में तेरी बहदूदी का है
मैं ख़लाओं की हूँ लामहदूदियत
और तुझे अहसास महदूदी का है
तू तो है तार ए शिकसता की सदा
साज़ तेरा लहन ए दाऊदी का है
मैं तेरा मैं हूँ, न तू ठुकरा मुझे
मैं ही सच्चाई हूँ, कर सजदा मुझे