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ओ आकाश! / ओसिप मंदेलश्ताम

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ओ आकाश ! अब सपने में दिखाई देगा तू मुझे

अंधा हो गया तू शायद, हो गया बेड़ा ग़र्क तेरा

जल गया दिन यह, जल गया कोरे काग़ज़-सा

थॊड़ी-सी राख बची और थोड़ा-सा अन्धेरा ।


(रचनाकाल : 1911)