भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़िस्मत / पॉल एल्युआर / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अभी उसकी आँख लगी ही थी
कि एक डाकू उसकी अन्धेरी गली में घुस आया
और उसकी छाती पर रखकर अपना कट्टा
उसने उसको मौत का भारी डर दिखाया
ऐसा लग रहा था मानो समय ठहर गया है
अब नीन्द क्या आएगी, भला,
बीत गया वह क्षण, आँख लगने का पहर गया है
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय