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काम की बात / मनमोहन
Kavita Kosh से
सब कुछ मालूम है
याद कुछ भी नहीं
छूट गया सो भूल गया
आसपास का दिखाई नहीं देता
मरना अपना याद नहीं
जो याद है काम का याद है
अभी जो ललचाता है
हमें बुलाता है रास्ता चीर
ख़ुद-ब-ख़ुद आगे आता है निशाने पर
उसी से प्यार
उसी से कारोबार
जिसे मार गिराना है अभी
बिल्कुल अभी