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काल-चंग पर फाग / नंदकिशोर आचार्य
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बह रही हवा फागुनी
बोर-बन्धी
पुष्ट उरोजों की प्राणद उष्मा-सा
परस धुप का-
जिन ने पात-पात तज दिया
उन्हीं रूंखों ने पहनी रंग-पाग
खिली-खिली रूत है सकाम
ऋतु-स्नाता युवती-सी
पकी फसल में झूम रहे
संकल्प समर्पित
काल-चंग पर जीवन गाता फाग।
(1968)