भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितना बड़ा काँटा ? / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर, शहर, दीवार, सन्नाटा
सबने हमें बाँटा

रात, आधी रोशनी षड्यन्त्र
सोई पसलियाँ जनतंत्र
कितना बड़ा काँटा ?

सख़्त हाथों पर धरी आरी
एक आदमख़ोर तैयारी
गर्दन हिली, चाँटा