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किदवई और पटेल रोवत / रामचरन गुप्त
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जुल्म तैने ढाय दियो एरै नत्थू भइया
अस्सी साल बाप बूढ़े कौ बनि गयौ प्राण लिबइया।
भारत की फुलवार पेड़-शांति को उड़ौ पपइया
नजर न पड़े बाग कौ माली, सूनी पड़ी मढ़ैया।
आज लंगोटी पीली वालौ, बिन हथियार लड़ैया
अरिदल मर्दन कष्ट निवारण भारत मान रखैया।
आज न रहयौ हिन्द केसरी नैया को खिवैया
रामचरन रह गये अकेले अब न सलाह दिवैया
किदवई और पटेल रोवते, रहयौ न धीर बधइया |