भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किनकी ध्वनियों को दुहराऊँ / माखनलाल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐ मेरी प्रेरणा-बीन के वादक!
बे जाने जब जब, बजा चुके हो,
जगा चुके हो, सोते फितनों को जब-तब,

किन चरणों में आज उन्हें रक्खूँ?
किसका अपमान करूँ?
किसकी ध्वनियों को दुहराऊँ
हृदय हलाहल-दान करूँ?

आया हूँ मैं नाथ, तुम्हारे कण्ठ कालिमा देने को!
और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।

रचनाकाल: श्री मनोहर पन्त जी का निवास, जबलपुर-१९३२