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कुंभ-1 / विजय कुमार
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जल अमृत है
कर्मों के फल से छुटकारा मिलता है जल में
जल कीच है
कर्मों के फल पोटली से निकल
गिरते हैं कीच में
जल में डुबकी लगाता
भरभराता
चीख़ता-चिल्लाता
आनन्द के अतिरेक में चिंघाड़ता
मदमस्त वनमानुस
ढलती दोपहर की धूप में
गेरुआ अंगोछा कांधे पर डाले
वह रंगा सियार
ढूंढता है, बाहर जाने का रास्ता किधर है ?