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कुछ तो खरीद बावली / इंदुशेखर तत्पुरुष

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चुन लिए गए मौसम के सारे फूल
तुम्हारी अगवानी में
वृक्षों ने उतार दी अपनी त्वचा
छापाखानों के लिए
छप रहे है धड़ाधड़ अभिनन्दन पत्र
तुम्हारे स्वागतगान में
सड़कों पर
बिछ गये लोग कालीन की तरह
लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी, कलमजीवी
धुन रहे हैं ढेर-ढेर रूई
बातियां बंटने के लिए चिरागों की
और थाम ली है मशाल व्यापारियों ने
मजबूती से मजबूत हाथों में
तुम, आओगे न जरूर मेरे भी घर ?

क्यों भंग करने पर तुली है
ओ, पागल लड़की।
अरबों-खरबों भरी इस उत्सवी उत्तेजना को
हुलिया तो देख तेरा
वह आ गया बिल्कुल सर पर
और तूने संवारे भी नहीं केश
चुनले-चुनले-चुनले
साबुन, शेंपुओं, सुगंधित तैलों से
पटी पड़ी दुनिया से कुछ भी
कुछ तो खरीद
न अलां ब्रांड की लिपिस्टिक
न फलां ब्रांड की नेपकिन
आखिर कुछ तो खरीद बावली!
बार-बार नहीं आएंगे तेरे द्वारे
ये सुपर स्टार, ये क्रिकेटर
ये कलाकोविद,
ये परियों-सी उतरती अलौकिक सुन्दरियां
बूढ़े कारखानों के सिकुड़ते
फेफड़ों में भरता प्राण
और छोड़ता अपाने हमारे रक्त, मज्जा में
कैसा मदमदाता आ रहा है वह
जर्जर पीढ़ी के खोखले स्नायुओं में
आ रहा है उफान
उसके तूफानी अट्टहासों से
और वह पागल लड़की
अभी भी पूछती है
क्या सचमुच कोई आएगा आधी रात
धूम-धड़ाके के साथ और बदल जाएगा
भूख और रोटी का गणित
जीवन और सपनों का व्याकरण
देह और प्यार का संगीत।
वह नहीं जानती शायद
सैंकड़ों पीढ़ियां गुजर जाने के बाद
आता है एक रोमांचक उत्सवी क्षण
-मिलेनियम पर्व
वह नादान लड़की
इतना भी नहीं जानती
उसकी शान में
ऐसे सवाल पूछना
गुस्ताखी होती है।

(नई सहस्त्राब्दी के आगमन पर लिखी गई कविता)