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केंचुआ / मनोज श्रीवास्तव

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केंचुआ

केंचुआ
पैदाइशी अंधा नहीं होता
--वह भीरु होता है,
कुछ बेहतर कर गुजरने की चाह में
सिर टकरा-टकराकर
अपनी आँखें फोड़ देता है

केंचुआ भ्रष्टाचार नहीं करता
वह विष, कार्बन, रेत-रेह
सब निगलकर
जन्म देता है--
एक उपजाऊ व्यवस्था का

क्या सचमुच
केंचुआ बनने का
दमखम है हममें,
नि:संदेह!
केंचुआ बनने के लिए
हमें अपने भौतिक-अभौतिक अस्तित्त्व को
खंगालना होगा,
खुद को
एक परिशोधन-शाला बनाना होगा.