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कैसा सूरज कैसा भोर / आभा पूर्वे
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कैसा सूरज कैसा भोर
घना तमस है चारो ओर।
कैसा होगा नगर क्या कहूँ
गाँवों में जब ऐसा शोर।
हंसी अधर के कोनों में है
भीगे हैं आंखों के कोर ।
आंधी की गति मोड़ चलूं मैं
रहा कहाँ अब वैसा जोर।
देवस्थल के पीछे छुप कर
जमा हुआ है आदमखोर।
अनजाने है देश-डगर सब
बादल-बिजली भी घनघोर।
छितराए हैं कुसुम भाव के
रिश्ते की टूटी हैं डोर।