भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिड़की / इब्बार रब्बी
Kavita Kosh से
उसकी खिड़की पर
लोहे की सलाख को
पहली बार
लपेटा
अँखुए ने।
ओह! बेल
यह क्या किया!
नवजात
गंधाते
मृणाल को
तूने लपेटा सलाख से।
किसके गले में डाल दँ
ये आदिवासी बाहें!
रचनाकाल : 1967