भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाओ तो ! / गोपीकृष्ण 'गोपेश'
Kavita Kosh से
मेरे गीतों को गाओ तो !
जो सुख तुमसे सब दिन रूठा,
जो कभी न सपनों में आया,
जिसको तुम पर हँसना भाया,
वह नौ-नौ आँसू रोएगा,
वीणा पर हाथ चलाओ तो !
मेरे गीतों को गाओ तो ! !
जिस छवि को तुमने प्यार किया,
इस पार किया, उस पार किया,
उसने ऐसा व्यवहार किया,
वह तो पानी - पानी होगी,
तुम राग ’विहाग’ सुनाओ तो !
मेरे गीतों को गाओ तो !
मेरे गीतों में घुले - मिले,
कितने पावस, कितने सावन,
कितने जीवन, कितने यौवन !
श्वासों को हृदय लगाना है,
श्वासों से होड़ लगाओ तो !
मेरे गीतों को गाओ तो !