भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गाय धोन / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय,
मतुर वेदेॅ बताय छौं माय-माय माय।
तोरो दूध देवता दानव के चढ़ाय छै,
मानव महामानव आरती लगाय छै।
हिन्दू-मुश्लिम सब्भै रोॅ जी दै छै अघाय,
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।
तोहें गाय छौं रंग बिरंगोॅ रोॅ,
आपनोॅ-आपनोॅ ढंगोॅ रोॅ।
तोरै सें पावै छीं, दूध, दही, घी, मलाय,
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।
तोहें होय छोॅ चरकी, कारी, गोली,
कोय कोय होय छोॅ मटरंगोॅ कैली।
तोंही बछड़ा सें खेती कराय,
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।
मरनी जीनी करै छौं तोरा दान,
जानोॅ में शंाति पाय करै छै प्रणाम।
सब्भे छै पुरानोॅ "संधि" कविता बनाय
तोहेॅ गाय छीकोॅ गाय-गाय गाय।