भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झाड़ू का तिनका / केशव शरण
Kavita Kosh से
वह झाड़ू
जिससे तुम चमकाया करती थीं
अपना घर
उसी फूल झाड़ू का
टूटा हुआ
वह नरम, हल्का, पंखदार तिनका
चिड़िया की चोंच में
लग रहा है
पहले से भी सुन्दर
पहले से भी उपयोगी
एक नज़र
क्या इधर भी
ध्यान दोगी ?