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डिगा रहल हे पांव / जयराम दरवेशपुरी

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रोटी के सपना में सपरल
हलूं हकासल दुन्नू शाम
लउट के अइलूं अप्पन गाम

लहकल दूपहरी अप्पन खून पसेना जरा लेलूं
देह के रोमा रोमा तक हम रोटी लगी सिझा अइलूँ
रातो बुतरून सुत सुत जा हल
रोटी के ले नाम

कत्ते दिन से घर के चूल्हा चक्की हकइ उपासल
निम्मक पानी पी-पी हकूं भूख साँप के डांसल
नुनुआँ के कपसल सन बोली
डिगा रहल हे पाँव

के छिनलक आगू के थरिया फोहवा कंठ के दूध
सोंच-सोंच के ओझरा जाही ई जोखिम के युद्ध
लाज शरम के धो-धा पीलूं
मलिको निमकहराम

कमियाँ सब मजदूर के अखनी लगल हको कुभेटी
एकर दहशत से दहलल हे ढील होतन गन टेंठी
धोखेबाज धधाल सभे के
मुर्छा मंतर सुबहो शाम।