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तितली / त्रिलोकीनाथ दिवाकर

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लाल पिरो रंगो में सजी के तितली, किन्नंे गेलै निकली
कैहिनों-कहिनों रंगो केे लगैने टिकली
किन्नें गेलै निकली

नान्हांे-नान्हों आँख सुन्नर, प्रेमो से भरलो
देही सें पंख बड़ो धारी सें सजलोॅ
सुरूजो के लाली संगे, मटकैनै पुतली .किन्नें गेलै

चुलबुल-चुलबुल बाड़ी-झाड़ी, फूलो पर बैठली लागै प्यारी
परागो के चुमीं क‘ उड़ै छै मातली .
किन्नें गेलै निकली ।

बड़ी शर्मिली नैं कोय बोली, आपन्है धुनों में नैं कोय टोली
पूरबा के संग-संग, उड़ै छै मचली
किन्नें गेलै निकली

देखी के तोरा पागल-पागल, भेलै ‘त्रिलोकी’ घायल-घायल
दिलो के दर्दो के, बुझै नै पगली
किन्नें गेलै निकली ।