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दण्डक अरण्य / वत्सला पाण्डे
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					जल नहीं 
एक जर्रा भी नहीं
ताक रहा चारों ओर
कि कब 
जख्म को मिले
एक स्पर्श 
समेट ले सारा लहू
जो बह गया था 
शिराओं से
दंडक अरण्य
उग आया है 
आंखों में
 
	
	

