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दुख देलें वखरा / जयराम दरवेशपुरी

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अकबक परान हइ
मजदुर किसान के
हमरे कमइया पर कोठिया सब के भरइ
टुटली मड़इया पर दिन-रात विपत झरइ
लउटल दिन देखइ ने
ऊँचका मकान के
डेउढ़िया के डेवढ़िया
जोड़-जोड़ झपटऽ हइ
बाज नियन ताकऽ हइ
बाघ नियन डपटऽ हइ
न´ गुज कनउं हमनी हलकान के

फट्टल लंगोटिया हइ
देहिया उघार हइ
पेट-पीठ सट्टल हे
घेरले अन्हार हइ
कइसन रौदारी में
रहइलूं समांग के

लूट-लूट सुख हम्मर
दुख देलें बखरा
अइसन गयगिल्ली से
मगज लेल चकरा
होतउ बंटवारा न´
धरती असमान के।