भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया-अेक / ॠतुप्रिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिनख नै
सगळै जीवां में
सिरेकार कुण कैयौ
म्हूं तो नीं कैवूं

प्रकृति सूं जुडिय़ोड़ा
सगळा जिनावर जाणै
प्रेम री भासा

पण मिनख
क्यूं जीवै
आपरी अळगी दुनिया में।