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द्वैत से परे / प्रेमशंकर रघुवंशी
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किरणों के कण-कण में सूर्य
हवाओ के ज़र्रे-ज़र्रे में पनी
और धरती के पोर-पोर में आकाश का होना
जितना सच है
उतना ही सच है हमारे रोम-रोम में
एक- दूजे का होना
जहाँ
द्रव्य और दृश्य की तरह एकाकार हैं हम।