भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप-छाँव / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
हमने सोचा
हमारे घर में धूप जरूर आनी चाहिए
फिर लगा
नहीं, छाँव जरूर आनी चाहिए
फिर लगा कि नहीं
पहले घर तो हो
जहाँ धूप होगी, वहाँ छाँव भी चली आएगी।