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नाच रहे पहले के / केदारनाथ अग्रवाल
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नाच रहे पहले के
वही वही मोर;
नाच रहे पहले के
वही वही भालू।
गूँज रहा पहले का
वही-वही
हाड़-तोड़
कान-फोड़ हल्ला।
चालू है पहले की
वही-वही
भाग-दौड़ घोर।
उबल रहे पहले के
वही-वही
भाषण के सड़े-गले
आलू;
चाट रहे लोग-बाग
पाँवो के वही-वही तालू।
रचनाकाल: १८-०२-१९७७