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नौ अंगिका हायकू / प्रदीप प्रभात
Kavita Kosh से
पिया रोॅ पाती
लगाय मन छाती
पढ़ै छी राती॥1॥
पढ़ी केॅ पाती
पिया मन भावै छै
याद आवै छै॥2॥
खोजै कन्हैया
ठहाका इंजोरिया
वनों में गैया॥3॥
बैशाख धूप
दुपहरिया रूप
दिन छै चुप॥4॥
अलबत छै
शासन-सिंहासन
ई स्वर्गासन॥5॥
हवा बहै छै
पीपर पत्ता डोलै
आशीष बोलै॥6॥
सौंसे संसार
फैशनों मंे डुबलोॅ
कत्ते लाचार॥7॥
जीवन-सार
छै पूरा परिवार
मीना बाजार॥8॥
गमकै खूब
फुललै बेली फूल
बैर-बबूल॥9॥