भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / 8 / बाघेली विष्णुप्रसाद कुवँरि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाजै री बँसुरिया मनभावन की।
तुम हो रसिक रसीली वंशी अति सुन्दर या मन की।
या मुख ले वाको रस पीवे अंग अंग सुख या तन की॥
शोभा निरखत सखी सबै मिलि बिष्णु कँुवरि सुख पावन की॥