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पहले कुछ हैरानी दो / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’
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					पहले   कुछ   हैरानी  दो
फिर आँखों को  पानी दो
अबके सहरा को तुम भी
दरिया  की   दरबानी  दो
सुख के कुछ पल माँगू तो
तुम फिर  टीस  पुरानी दो
धुँधले  मंज़र  को  मौला !
थोड़ी   सी   ताबानी   दो
ख्वाबों  से  बचना  है  तो
नींदों   की    क़ुर्बानी   दो
हिज्र के  दिन कट जायेंगे
वस्ल की शब  तूलानी दो
	
	