भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी / देवेन्द्र आर्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे हिस्से है गुनगुना पानी
अपने अहवाल तू सुना पानी

ताल पोखर नदी कुएँ सूखे
नालियों में है चौगुना पानी

तिश्नगी इन दिनों पहनती है
अपने हाथों कता बुना पानी

ख़ुद नदी है विरोध में तेरे
यह भला मैंने क्या सुना पानी  !

ऐ मियाँ ग्लैशियर पता भी है  ?
कर रहा तुझको अनसुना पानी

ख़ून इफ़रात था मगर मैंने
ख़ून के बदले में चुना पानी