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पानी का पुल / विशाखा मुलमुले
Kavita Kosh से
मैं तुम्हें तुम्हारे आब से चीन्हती हूँ
तुम मुझे मेरी करुणा से
दोआब पर बैठे हम शांत समय में
संगम पर पाँव पखारते हैं
जब टूटकर बिखरते हैं तुम्हारे आँसू
छलक उठती है मेरे नैनो से गंगा - जमुना
हर बार तेरी आँख से टपका मोती
बन जाता मेरी आँख का पानी
मीलों - मीलों खारे जल में
नीले - नीले दर्द के पल में
फ़ासला हो तब भी सुन लेते हैं हम पुकार
जैसे सुन लेती है खारे जल की सबसे वृहद मछली
रक्त संबंध से नही जुड़े हम
पानी का पुल है हमारे मध्य
और दो अनुरागी साध लेते है
पानी पर चलने की सबसे सरलतम कला !