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पेपरवेट / दीप नारायण
Kavita Kosh से
कियो अबउक
बइसउक कुर्सी पर
बतियाउ आ चलि जाउ
किछु नहि बजैत अछि,
निर्विकार, निर्लिप्त,
देखैत रहैत अछि
गुनैत रहैत अछि
चुप-चाप,
कतेकोक आस
कतेकोक जीवन
कतेकोक पेंशन आ कि
कतेको रौदी-दाहिक
कतय लागल छैक अरंगा,
रुकल अछि कतेक मास सँ
प्रमोशनक फाइल,
ट्रांसफर प्रपोजल मे छैक कोन लफड़ा,
कतेक गेलै ऑफिस
कतेक घर,
उपर सँ नीचा धरि
कोन-कोन बाबूक मुँह मे
लागल छै खून
कहि सकैत अछि !
बहुत किछु
मुदा,
टेबुल पर पड़ल
चुप्पी लधने
मौन साधना मे
लीन अछि पेपरवेट।