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प्राणियों में प्राण हूँ / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
हवा हूँ हवा मैं
बेफिक्र हवा हूँ
स्वयं निष्प्राण हूँ
पर जिसको भी छू दूँ मैं
प्राणवान हो जाये
बेजान पत्थरों में जान
फूंक देती हूँ
श्वासों का तानाबाना
अनजाने बुनती हूँ
प्राणियों में प्राण मैं
संगीत में तान हूँ
अपने पराये से अनजान हूँ
स्वयं निष्प्राण हूँ
पर जीवन की जान दूँ
उसकी पहचान हूँ
चाहो तो पुकार लो
दौड़ी चली आऊंगी
सहला पुचकार कर
धीरे से प्यार कर
वापिस चली जाऊंगी।