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प्रीत-३ / ओम पुरोहित ‘कागद’
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मन दौड़ा
प्रीत के लिए
परन्तु
प्रीत दूर
दूर जाना कठिन ।
प्रीत करनी आसान
पालनी कठिन
परन्तु पता नहीं
कब
पल गई प्रीत !
पता चला
वियोग में
आंसूओं के बल ।
आंसूओं का
हुआ अंत
प्रीत का नहीं ।
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"