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प्लास्टिक की खुशामद / मनमोहन
Kavita Kosh से
स्मृतियाँ मिट जाएँगी
लेकिन प्लास्टिक रहेगा
और वे स्मृतियाँ जो प्लास्टिक की बनी हैं
लोग चले जाएँगे
लेकिन प्लास्टिक रहेगा
और वे लोग जो प्लास्टिक के बने हैं
बातें रहेंगी, न काम रहेंगे
लेकिन प्लास्टिक रहेगा
और प्लास्टिक की बातें और प्लास्टिक के काम
यों ’इस्तेमाल करो और फेंक दो’
यह प्लास्टिक की ही संस्कृति है
लेकिन यह विधान
सिर्फ़ प्लास्टिक की ख़ास-ख़ास चीज़ों पर ही लागू है
पूरे प्लास्टिक पर नहीं