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बदलाव / सुधा ओम ढींगरा
Kavita Kosh से
सूखे पत्तों को
उड़ते देख
ऋतु ने
प्रश्न किया--
क्या तुम्हें
मेरे साथ की
इच्छा नहीं रही?
पत्तों ने कहा--
हम तो
बूढ़े,
बेकार
हो गए.
सोचा,
क्यों ना
बिखर कर
राख हों जायें.
इसी
बहाने
अपनी जननी से
मिलने की ललक
पूर्ण हो जाए.
शायद
उसके
नव प्रजन्न में
सहायक हो सकें.
सुनते ही
ऋतु भी
इठलाती
रंग बदलने लगी.