बहुत सताई ईखड़े रै तैने / हरियाणवी
- अंगिका लोकगीत
 - अवधी लोकगीत
 - कन्नौजी लोकगीत
 - कश्मीरी लोकगीत
 - कोरकू लोकगीत
 - कुमाँऊनी लोकगीत
 - खड़ी बोली लोकगीत
 - गढ़वाली लोकगीत
 - गुजराती लोकगीत
 - गोंड लोकगीत
 - छत्तीसगढ़ी लोकगीत
 - निमाड़ी लोकगीत
 - पंजाबी लोकगीत
 - पँवारी लोकगीत
 - बघेली लोकगीत
 - बाँगरू लोकगीत
 - बांग्ला लोकगीत
 - बुन्देली लोकगीत
 - बैगा लोकगीत
 - ब्रजभाषा लोकगीत
 - भदावरी लोकगीत
 - भील लोकगीत
 - भोजपुरी लोकगीत
 - मगही लोकगीत
 - मराठी लोकगीत
 - माड़िया लोकगीत
 - मालवी लोकगीत
 - मैथिली लोकगीत
 - राजस्थानी लोकगीत
 - संथाली लोकगीत
 - संस्कृत लोकगीत
 - हरियाणवी लोकगीत
 - हिन्दी लोकगीत
 - हिमाचली लोकगीत
 
बहुत सताई ईखड़े रै तैने बहुत सताई रे
बालक छाड़े रोमते रै, तैने बहुत सताई रे
डालड़ी मैं छाड्या पीसना
और छाड़ी सलागड़ गाय
नगोड़े ईखड़े, तैने बहुत सताई रे
कातनी मैं छाड्या कातना
और छाड़ेसें बाप और माय
नगोड़े ईखड़े तैने बहुत सताई रे
बहुत सताई ईखड़े रै, तैने बहुत सताई रे
बालक छाड़े रोमते रै, तैने बहुत सताई रे
भावार्थ
--' बहुत सताया है, ईख, तूने मुझे बहुत सताया है । मैं अपने पीछे घर में बच्चों को रोता हुआ छोड़कर आई
हूँ । तूने मुझे बहुत दुखी किया है । डलिया में अनाज पड़ा है और दूध देने वाली गाय को भी मैं बिना दुहे हुए ही
छोड़ आई हूँ । निगोड़ी ईख, तूने मुझे बहुत परेशान किया है । कतनी में पूनियाँ भी बिना काते हुए ही छोड़ आई
हूँ । तेरे लिए मैं अपने माता-पिता को भी बिना देखभाल के ही छोड़ आई हूँ । देख तो ज़रा ईख, तूने मुझे कितना
हैरान किया है । कितना परेशान किया है । पीछे घर में बालकों को रोता छोड़ आई हूँ । तूने बहुत सताया है मुझे ।
	
	