भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिखर रहा विश्वास आजकल / सत्यम भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिखर रहा विश्वास आजकल
आम-जनों की आस आजकल

गांवों के सपने सलीब पर
शहरों में उल्लास आजकल

बहू रोज डिस्को जाती है
वृद्धाश्रम में सास आजकल

दिल्ली खून-पसीना पीती
नहीं बुझ रही प्यास आजकल

कविगण मिल कोरस गाते हैं
कविता बनी परिहास आजकल

देख मंच की हालत 'सत्यम'
गदहों में उल्लास आजकल