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बेचारी चाकी / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
भूखी ही पड़ी है
घर के एक कोने में
उसी दिन से
जब से
पहाड़ को तोड़ कर
घड़ कर बनाई गयी थी
बेचारी चाकी ।
अन्न का
एक दाना भी
नहीं मिला छूने को
इसी लिए
पूछती है
बरसों पहले
आंगन में आई
औखली से
अनाज का मतलब
निगोट व्रत की व्रतिनी
बेचारी चाकी ।