ब्लैकमेलर-5 / वेणु गोपाल
मैं उसे देखता हूँ--
चीता बहुत शातिर होता है।
दबे पाँव बढ़्ता हुआ
कब, किस ओर से शिकार पर
झपट पड़ेगा
कोई नहीं जानता।
मैं उसे देखता हूँ--
भारतीय प्रजातंत्र का हें-हें करता
भारवान, तोंदवान मंत्री
कब कौन-सी बेतुकी बात
कहाँ बोल देगा--
कोई नहीं जानता।
मैं उसे देखता हूँ--
साँप कहाँ? शैतान कहाँ?
गर्ज़ की मौत कहाँ?
जहाँ नाम लो
वहाँ।
मैं उसे देखता हूँ--
बर्फ़ गलती है लेकिन नहीं गलती।
ज़मीन हिलती है लेकिन नहीं हिलती
आँखें बंद कर लेता हूँ लेकिन नहीं करता।
एकाएक मर जाता हूँ लेकिन नहीं मरता।
मैं उसे देखता हूँ--
ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत जंगल में आग
लग सकती है
अफ़ीम खाकर सोई हुई बीमारियाँ
जग सकती हैं।
अभी-अभी हँसता हुआ मैं अभी-अभी
रो सकता हूँ।
जो-जो नहीं होना चाहिए वह-वह सब
हो सकता हूँ
मैं उसे देखता हूँ--