भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भूल / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
भूल
हम समय की
रेत पर
लिख नाम अपना
भूल जाते हैं कि हम
कण-कण उड़ेंगे
आँधियाँ तो क्या
जरा झोंका बहुत है
प्राण दरकाने लगे तो।