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मरना भला / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
भोर होते ही
पक्षी क़तार बद्ध हो
उड़ान भरते हैं
सपने ही नहीं लेते
उड़ते भी हैं
पेट भर कर खाते हैं
उनकी तरह नहीं जो
केवल सपने देखते हैं
उड़ते नहीं
भूखों मरते हैं और भाग्य की रेखाओं को
कोसते हैं।
जिओ तो कर्म करके जिओ
सिर उठा कर चलो
धरती पर बोझ बनने से
मरना भला।