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महँगाई / निकानोर पार्रा / विनोद दास
Kavita Kosh से
रोटी के दाम बढ़ते हैं फिर रोटी के दाम बढ़ते हैं
मकान के किराये बढ़ते हैं
इससे फ़ौरन सारे मकानों के किराये दोगुने हो जाते हैं
कपड़ों के दाम बढ़ते हैं
फिर दुबारा कपड़ों के दाम बढ़ते हैंं
बेतहाशा
हम एक मकड़जाल में फंस गए हैं
पिंजड़े में खाना रखा है
ज़्यादा नहीं है मगर खाना तो है
पिंजड़े के बाहर है सिर्फ़ आज़ादी का बेपनाह खित्ता ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास